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खण्ड
*अनेकान्तवाद *
गुणोंसे, अपने धर्मसे, अपने स्वरूपसे जो पदार्थ सत् है, वही दूसरे पदार्थके धर्मसे, और गुणसे और स्वरूपसे 'सत्' नहीं हो सकता । जो वस्तु सत् नहीं है, उसे असत् कहने में कोई दोष उत्पन्न नहीं हो सकता। ___ इस प्रकार भिन्न-भिन्न अपेक्षाओंसे वस्तुको सत् और असत् कहने में विचारशील विद्वानोंको कोई वाधा उपस्थित नहीं हो सकती। एक कुम्हार है । वह यदि कहे कि मैं सुनार महीं हूँ तो इस बातमें वह कुछ भी अनुचित नहीं कह रहा है। मनुष्यकी दृष्टिसे यद्यपि वह सत् है तथापि सुनारकी दृष्टिसे वह असत् है । इस प्रकार अनुसन्धान करनेसे एक ही व्यक्तिमें सत् और असत्का अनेकान्तवाद बराबर सिद्ध होजाता है। किसी वस्तुको असत् कहनेसे मतलब यह नहीं है कि हम उसके सत्-धर्मके विरुद्ध कुछ बोल रहे हैं। ___ जगत्के सब पदार्थ उत्पत्ति, स्थिति और विनाश, इन तीन धर्मों से युक्त हैं। उदाहरणकेलिए-एक लोहेकी तलवार ले लीजिये, उसको गलाकर उसकी कटारी बना लो । इससे यह स्पष्ट होगया कि तलवारका विनाश होकर कटारीकी उत्पत्ति होगई; लेकिन इससे यह नहीं कहा जासकता कि तलवार बिलकुल ही नष्ट होगई अथवा कटारी बिलकुल नई बन गई । क्योंकि तलवार और कटारीमें जो मूल तत्त्व है,वह तो अपनी उसी स्थितिमें मौजूद है। विनाश और उत्पत्ति तो केवल आकारकी ही हुई है। इस उदा