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________________ ८६ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * द्वितीय ...... ........aaivanandinior इतने विवेचनसे हम इस बातको स्पष्ट समझ सकते हैं कि घड़ेका एक स्वरूप विनाशी है और दूसरा ध्रुव । इसी बातको यदि हम यों कहें कि विनाशी रूपसे घड़ा अनित्य है और ध्र व रूपसे नित्य है तो कोई अनुचित न होगा। इसी तरह एक ही वस्तुमें नित्यता और अनित्यता सिद्ध करनेवाले सिद्धान्त ही को अनेकान्तवाद कहते हैं। ____ अनेकान्तवादकी सीमा केवल नित्य और अनित्य, इन्हीं दो बातों में समाप्त नहीं हो जाती; सत् और असत् आदि दूसरे विरुद्ध रूपमें दिखलाई देनेवाली बातें भी इस तत्त्वज्ञान के अन्दर सम्मिलित हो जाती हैं। घड़ा आँखोंसे स्पष्ट दिखलाई देता है। इससे हर कोई सहज ही कह सकता है कि "वह सत् है", मगर न्याय कहता है कि अमुक दृष्टिसे वह असत् भी है। यह बात बड़ी गम्भीरताके साथ मनन करने योग्य है कि प्रत्येक पदार्थ किन बातोंके कारण सत् कहलाते हैं । रूप, रस, गन्ध, आकारादि अपने ही गुणों और अपने ही धर्मोंसे, प्रत्येक पदार्थ सत होता है। दूसरेके गुणोंसे कोई पदार्थ सत नहीं कहलाता। एक स्कूलका मास्टर अपने विद्यार्थीकी दृष्टिसे मास्टर कहलाता है, एक पिता अपने पुत्रकी दृष्टिसे पिता कहलाता है, पर वही मास्टर और वही पिता दूसरोंकी दृष्टि से मास्टर या पिता नहीं कहला सकते। जैसे स्वपुत्रकी अपेक्षासे जो पिता होता है, वही परपुत्रकी अपेक्षासे पिता नहीं होता है। उसी तरह अपने
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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