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* अनेकान्तवाद *
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अन्य विद्वानोंकी अनेकान्तवादपर सम्मतियाँ
अंग्रेजीके प्रसिद्ध विद्वान् डाक्टर "थामस"का कथन है कि न्याय-शास्त्रमें जैन-न्यायका स्थान बहुत ऊँचा है । इसके कितने ही तर्क पाश्चात्य तर्क-शास्त्रके नियमोंसे बिलकुल मिलते हुए हैं। स्याद्वादका सिद्धान्त बड़ा ही गम्भीर है। यह वस्तुकी भिन्न-भिन्न स्थितियोंपर अच्छा प्रकाश डालता है।
जैन-तत्त्वज्ञान की प्रधान नीव स्याद्वाद-दर्शनपर स्थित है। डाक्टर हर्मन जेकोबीका कथन है कि इसी स्याद्वादके ही प्रतापसे महावीरने अपने प्रतिद्वन्द्वियोंको परास्त करनेमें अपूर्व सफलता प्राप्त की थी। "अज्ञेयवाद"के बिलकुल प्रतिकूल इसकी रचना की गई है।
अनेकान्तवादका स्वरूप अनेकान्तवाद जैनदर्शनका मुख्य विषय है। जैनतत्त्वज्ञान की सारी इमारत अनेकान्तवादके सिद्धान्तपर अवलम्बित है। वास्तवमें इसे जैनदर्शनका मूल सिद्धान्त समझना चाहिये । 'अनेकान्त' शब्द एकान्तत्व-सर्वथात्व-सर्वथा-एकमेव, इस एकान्त निश्चयका निषेधक और विविधताका विधायक है। सर्वथा एक ही दृष्टिसे पदार्थके अवलोकन करनेकी पद्धतिको अपूर्ण समझकर ही जैनदर्शनमें अनेकान्तवादको मुख्य स्थान दिया गया है । अनेकान्तवादका अर्थ है-वस्तुका भिन्न-भिन्न दृष्टि-विन्दुओंसे