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अनेकान्तवाद
(स्याबाद-दर्शन) भारतीय प्राचीन तथा अर्वाचीन कतिपय दार्शनिक विद्वानों
13 2 ने जैनदर्शनके अनेकान्तवादका जो स्वरूप सभ्य संसारके सामने रक्खा है, वह उसका यथार्थ स्वरूप नहीं है। उन्होंने अनेकान्तवादका स्वरूप-प्रदर्शन और उसके प्रतिवादात्मक आलोचना करते समय, बहुधा साम्प्रदायिक विचारोंसे ही काम लिया है अर्थात् साम्प्रदायिकत्व मोहके कारण ही कितनेक विद्वानोंने अनेकान्तवादको संदिग्ध तथा अनिश्चितवाद कहकर उसे पदार्थ-निर्णयमें सर्वथा अनुपयोगी और उन्मत्त पुरुषोंका प्रलापमात्र बतला दिया है । पर वास्तवमें बात यह है कि अनेकान्तवादका सिद्धान्त बड़ा ही सुव्यवस्थित और परिमार्जित सिद्धान्त है। इसका स्वीकार मात्रजैनदर्शनने ही नहीं किया है, बल्कि अन्यान्य दर्शन-शास्त्रोंमें भी इसका बड़ी प्रौढ़तासे समर्थन किया गया है कि अनेकान्तवाद वस्तुतः अनिश्चित एवं संदिग्धवाद नहीं, किन्तु वस्तुस्वरूपके अनुरूप सर्वाङ्गपूर्ण एक सुनिश्चित सिद्धान्त है।