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खण्ड ]
* सप्तभङ्गी *
यो चार जो वचन-प्रकार बनाये गये, उनमेंसे मूल तो आरम्भके दो ही हैं। पिछले दो वचन - प्रकार प्रारम्भके संयोग से उत्पन्न हुए हैं। कदाचित् अमुक अपेक्षासे घट अनित्य ही है, कदाचित् अमुक अपेक्षा घट नित्य ही है, ये प्रारम्भके दो वाक्य जो अर्थ बताते हैं, वही अर्थ तीसरा वचन-प्रकार क्रमशः बताता है और उसी अर्थको चौथा वाक्य युगपत् - एक साथ बताता है । इस चौथे वाक्यपर विचार करनेसे यह समझ में आ सकता है कि घट में अवक्तव्य धर्म भी है परन्तु घटको कभी एकान्त वक्तव्य नहीं मानना चाहिये । यदि ऐसा मानेंगे तो घट जो अमुक अपेक्षासे नित्य रूप और अमुक अपेक्षा से अनित्य रूपसे अनुभव में आता है, उसमें बाधा आ जायगी । अतएव ऊपर के चारों वचन-प्रयोगों को 'स्यात्' शब्द से युक्त अर्थात् कदाचित् अमुक अपेक्षासे समझना चाहिये ।
इन चार वचन-प्रकारोंसे अन्य तीन वचन-प्रयोग भी उत्पन्न किये जा सकते हैं।
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५ - अमुक अपेक्षासे घट नित्य होने के साथ ही अवक्तव्य भी है ।
६ - अमुक अपेक्षासे घट अनित्य होने के साथ ही अवक्तव्य
भी है ।
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- अमुक अपेक्षासे घट नित्यानित्य होने के साथ ही
अवक्तव्य भी है ।