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* जेल में मेरा जैनाभ्यास
[ प्रथम
जाते हैं ? इन घटनाओंके मूल कारण हिंसा और हिंसा में ढूँढ़ने से नहीं मिल सकते। जितनी भी जातियाँ अथवा देश. गुलाम होते हैं, वे सब नैतिक कमजोरीके कारण अथवा यों कहिये कि आसुरी सम्पदाके आधिक्यके कारण होते हैं।
अहिंसा भेद
जैन आचार्थ्यांने हिंसाको कई भेदोंमें विभक्त कर दिया है। अहिंसा के मुख्य चार भेद किये हैं, वे इस प्रकार हैं:
१ - संकल्पी हिंसा, २ - आरम्भी - हिंसा, ३ – व्यवहारी - हिंसा, और ४-विरोधी हिंसा |
१- किसी भी प्राणीको संकल्प अर्थात् इरादा करके बुरे परणामोंसे मारना, उसे 'संकल्पी - हिंसा' कहते हैं । जैसे कोई चींटी जा रही हो, उसे केवल हिंसक भावनासे जान बूझकर
मार डालना ।
२ – गृहकार्य में, स्नानमें, भोजन बनाने में, झाडू देने में, जल पीने आदिमें जो-जो अप्रत्यक्ष जीव-हिंसा होजाती है, उसे 'आरम्भी - हिंसा' कहते हैं ।
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३ – व्यापार में, व्यवहार में चलनेमें, फिरने में जो हिंसा • - होती है, उसे 'व्यवहारी-हिंसा' कहते हैं 1
४ - विरोधी से अपनी आत्म-रक्षा करने के निमित्त अथवा किसी आततायी अथवा हमला करनेवाले से अपने राज्य,
देश
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