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________________ खण्ड * अहिंसाका स्वरूप * ६६ अथवा कुटुम्बकी रक्षा करनेके निमित्त जो हिंसा करनी पड़ती है, उसे 'विरोधी-हिंसा' कहते हैं। इनके पश्चात् स्थूल अहिंसा और सूक्ष्म-अहिंसा, द्रव्यअहिंसा और भाव-अहिंसा, देश-अहिंसा और सर्व-अहिंसा इत्यादि और भी कई भेद किये गये हैं । १-भूलसे, अज्ञानतासे, अनजानपनेसे अगर किसी चलते फिरत जीवकी हिंसा होजाती है, यह ख्याल करते हुये कि कोई जीव मर न जाय, उसे 'स्थूल-अहिंसा' कहते हैं। २-जान करके या अनजान करके किसी भी प्रकारके प्राणीको कष्टतक न पहुँचानेको 'सूक्ष्म-अहिंसा' कहते हैं । ३-किसी भी प्रकारके जोवको अपने शरीरसे कष्ट न पहुँचानेको 'द्रव्य-अहिंसा' कहते हैं। ४-किसी भी प्रकारके जीवको भावों तकसे कष्ट देनेका भाव न रखनेको 'भाव-अहिंसा' कहते हैं। ५-किसी भी प्रकारकी आंशिक अहिंसाकी प्रतिज्ञाको 'देशअहिंसा' कहते हैं। ६-सार्वदेशिक अहिंसाकी प्रतिज्ञाको 'सर्व-अहिंसा' कहते हैं। अब हम यह बतानेका प्रयत्न करेंगे कि गृहस्थ और मुनि कहाँतक अहिंसाव्रतका पालन करते हैं ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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