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[७४ ] इसी सम्बन्ध में प्राचार्य समन्तभद्र स्वामीने कहा हैसम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यङ नपुंसकत्रीत्वानि । दुष्कुलविकृताल्पायुदेरिद्रताश्च ब्रजन्ति नाप्यतिकाः॥
( रतनकरंड श्रावकाचार) अर्थात्-अब्रत सम्यग्दृष्टि जीव मरकर नरक, तिथंच नपुंसक और स्त्रीपर्याय तथा नीच कुल, विकृत शरीर, अल्पायु, दरिद्रता को प्राप्त नहीं करते हैं। इससे स्त्री पर्याय की निंद्यता एवं संयम की अपात्रता का परिचय स्पष्ट सिद्ध है।
संयमी और वस्त्रत्याग - प्रो० हीरालाल जी ने स्त्री-मुक्ति के पीछे 'संयमी और वस्त्रत्याग' शीर्षक देकर यह बताया है-"वसर पहने हुए भी भंयमी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।" इस सम्बन्ध में उन्हों ने यह पंक्तियां लिखी हैं
"श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यतानुसार मनुष्य वस्त्र. त्याग करके भी सब गुणस्थान प्रात कर सकता है और वह का सर्वथा त्याग नहीं कर के भी मोक्ष का अधिकारी हो सकता है। पर प्रचलित दिगम्बर मान्यतानुसार वख के सम्पूर्ण त्याग से ही संयमी और मोक्ष का अधिकारी हो सकता है। अतएव इस विषय का शास्त्रीय चिंतन आवश्यक है।"
सब से पहले हम इस सवल संयम और सबस मोक्ष