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[ ७२] पर्याय में उत्पन्न ही नहीं होता है।
अर्थात्-सम्यग्दर्शन सहित संयमी पुरुष मरकर स्त्री पर्याय में कभी उत्पन्न ही नहीं हो सकता है। इस अवस्था में जब मोक्षगामी पुरुष के स्त्री पर्याय का ही सर्वथा अभाव हो जाता है तब स्त्री के मोक्ष जाने की बात ही नहीं रहती है। जिसका बीज ही नहीं रहता उसका वृक्ष कहांसे होगा ? अतः द्रव्यस्त्री के मोक्ष की प्राप्ति सर्वथा असम्भव है। यह बात हेतुवाद, युक्तिवाद एवं आगम प्रमाणों से सुनिश्चित एव मुसिद्ध है। यह बात सभी चारित्र ग्रन्थों में एवं पुराण शास्त्रों में सुप्रसिद्ध है कि स्त्री लिंग का पहले छेदन हो जाता है। स्त्रीलिंग का छेद हुए विना संयम की प्राप्ति सर्वथा असम्भव है। इस सम्बन्ध में आचार्यवर्य प्रभाचन्द्र ने नीचे लिखे वाक्य बड़े महत्व के दिये हैं
उदयश्च भावस्यैव न द्रव्यस्य स्त्रीत्वान्यथानुपपत्तेश्वासां न मुक्तिः। आगमे हि जघन्येन सप्ताष्टभिर्भवैरुत्कर्षेण द्वित्रर्जीवस्य रत्नत्रयाराधकस्य मुक्तिरुक्ता । यदा चास्य सम्यग्दर्शनाराधक वं तत्प्रभृति सर्वासु स्त्रीषत्पत्तिरेव न संभवतीति कथं स्त्रीमुक्ति सिद्धिः?
(प्रमेयकमल मार्तण्ड पृष्ठ ६५-६६) इसका अर्थ ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है।
इसी सम्बन्ध में भगवन्जिनसेनाचार्य आदि पुराणमें लिखते हैं :