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________________ [७१ ] अर्थात्-स्त्रियों में इतना भी संयमभाव नहीं हो सकता है जो ऋद्धि विशेष को उनमें उत्पन्न कर सके तो फिर मोत-साधक संयमकी प्राप्ति तो सर्वथा असम्भव है। स्त्रियोंम उस प्रकार के संयम की प्राप्तिका सर्वथा निषेध है। पुरुषों में निषेध नहीं है। प्राचार्य-धुरीण प्रभाचंद्र के कथन से भी स्त्रियों में संयम का अभाव और मोक्षका निपेध स्पष्ट सिद्ध है। स्त्री को वस्त्र धारण करने से मोक्ष क्यों नहीं होती ? अथवा उसके महाव्रत क्यों नहीं हो सकते हैं ? इस बात का खण्डन हम आगे 'सवस्त्र अवस्था में मुक्तिकी प्राप्ति सर्वथा असम्भव है' इस प्रकरण में करेंगे। इस लिये यहांपर इतना लिखना ही पर्याप्त है कि मोक्ष की साधन-भूत रत्नत्रय-रूप सामग्री की पात्रता नहीं होने से स्त्री मोक्षाधिकारिणी नहीं हो सकती है। एक बात यह भी स्त्री मुक्तिके निषेधमें बहुत महत्वपूर्ण एवं स्त्री-मुक्ति की जड़को ही उखाड़ देती है कि शास्त्रों में बताया गया है कि भावस्त्री के ही संयम एवं मोक्ष प्राप्ति बताई गई है। द्रव्यस्त्री के नहीं। क्योंकि मोक्ष के साधक संयम को प्राप्त करने वाला जीव स्त्रीलिंग का पहले ही छेद कर देता है। स्त्री-पर्याय ही सर्वथा नष्ट हो जाती है। संयमीके लिये ऐसा विधान है कि जो रत्नत्रयाराधक पुरुष है वह अधिकसे अधिक ७-८ भवों में और जल्दी से जल्दी २-३ भवों में मुक्ति प्राप्त कर लेता है, परन्तु ऐसा रत्नत्रय का धारक पुरुष फिर स्त्री
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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