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[७० ] अर्थात्-स्त्रियों में देशव्रत ही हो सकते हैं । महाब्रतों का उनमें केवल उपचार किया जाता है। इसका मूल कारण यही है कि वह वस्त्रोंका परित्याग करने में सर्वथा असमर्थ है। वह वस्त्र-त्याग करने में असमर्थ क्यों है ? इसके कई अनिवार्य कारण हैं-एक तो यह कि स्त्री के शारीरिक अंगोपांग इस प्रकार के होते हैं कि जिन्हें देखकर दूसरों को विकार हो सकता है, उसे दूर करनेके लिये वस्त्र धारण करना आवश्यक है। दूसरे स्त्री में लज्जा स्वाभाविक धर्म है उसकी बाध्यता भी उसके वस्त्र-मोचनमें असमर्थ है।
तीसरे-स्त्रीको मासिक धर्म आदिकी प्राकृतिक शारीरिक मलिनता ऐसी रहती है जिसके लिये वस्त्र धारण करना उसके लिये आवश्यक है। इन सब कारणों से जब स्त्री इच्छापूर्वक वस्त्र धारण करती है तब सवस्त्र अवस्था में उसके महाव्रत कैसे हो सकते हैं ? अर्थात् नहीं हो सकते हैं । तथा नग्नताके बिना स्त्री के छठा गुणस्थान भी नहीं हो सकता है, फिर क्षपक श्रेणी एवं मोक्ष की बात तो कोसों दूर है।
स्त्रीणां संयमो न मोक्ष-हेतुः नियमेनर्द्धि-विशेषाहेतुतत्वान्यथानुपपत्तेः। यत्र हि संयमः सांसारिक-लब्धीनामप्यहेतुस्त्रासौ कथं निःशेषकर्म-विप्रमोक्ष-लक्षणं मोक्ष-हेतुः स्यात् । नियमेन च स्त्रीणामेव ऋद्धिविशेषहेतुः संयमो नेष्यते। न तु पुरुषाणाम् ।।
(प्रमेय कमल मार्तण्ड पृ० ६४