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________________ [ ६६] सकता है, अपर्याप्त अवस्था में नहीं । अर्थात-स्त्रियों के अपर्याप्त अवस्था में कोई सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता है। इस कथन से यह बात भली भांति सिद्ध हो जाती है कि स्त्री-पर्याय इतनी निन्द्य पर्याय है जिसमें सम्यग्दृष्टि जीव मरकर जा नहीं सकता। तब वह पर्याय मोक्ष के लिये तो नितांत अपात्र है। ४-स्त्री-मुक्ति में बाधक चौथा हेतु यह है कि वह सकल संयम ( महाव्रत) धारण करने में उस पर्याय में सर्वथा असमर्थ है। उसके कई कारण हैं एक तो यह कारण है कि वह हीन शक्तिक होने से उत्तम संयम धारण नहीं कर सकती है। दूसरा कारण यह है कि उसको शरीरकी अशुद्धि संयम धारण करने में पूर्ण बाधक है, क्योंकि उसके मासिक रजस्राव समय पर अथवा असमयमें भी सदैव होता रहता है उस अवस्था में वह नितान्त अशुद्ध बन जाती है। यहां तक कि वह मुखसे प्रगट रूपमें शास्त्रीय पाठों का उच्चारण भी नहीं कर सकती है वैसी अवस्था में उसकी संयम की विशुद्धि कैसे रह सकती है ? नहीं रह सकती। इसी लिये स्त्री को आर्यिका अर्थात् पंचम गुणस्थान तक पात्रता प्राप्त करने का ही अधिकार है। वह छठे गुणस्थान की महाबत को अधिकारिगी नहीं है। यथा - देशब्रतान्वितैस्तासारोप्यते बुधैरततः । महाब्रतानि सञ्जातिज्ञप्त्यर्थमुपचारतः॥सं.व वि.
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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