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[६] स्वर्ग से आगे जाने में भी बाधक है। क्योंकि उत्तम संहनन नहीं होने से वह सामर्थ्य हीन है तो फिर पूर्ण सामर्थ्य (केवल प्रथम संहनन) से प्राप्त होने वाली मोक्षकी अधिकारिणी वह किस प्रकार बन सकती है ? नहीं बन सकती।
जिस प्रकार स्त्री सामर्थ्यहीन होने से सोलहवें स्वर्गसे ऊपर नहीं जा सकती है उसी प्रकार वह छठे नरक से आगे सातवें में भी नहीं जा सकती है। यहां पर नरक जाने का और मोक्ष जाने का कोई अधिनाभाव नहीं है, किन्तु सामर्थ्य का विचार है। पूर्ण सामर्थ्य वाला ही सातवें नरक जा सकता है। अतः स्त्री सामथ्यहीन होने से मोक्ष की अधिकारिणी नहीं है।
३-स्त्री-मुक्ति में बाधक तीसरा हेतु यह भी है कि स्त्री पर्याय को इतना निन्द्य और हीन माना गया है कि फिर यदि किसी जीव के मनुष्यायु का बन्ध भी हो जाय परन्तु पीछे से उसको सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाय तो वह जीव मरकर मनुष्यपर्यायमें जाकर पुरुष ही होगा। सम्यग्दर्शन सहित स्त्रीपर्यायमें नहीं जा सकता है। ऐसा नियम है। यथा
___“मानुपाणां त्रितयमप्यस्ति पर्याप्तकानामेव, नापर्यापकानाम्।"
(सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ ११) अर्थ-मानुषी के-द्रव्यस्त्री के तीनों ही प्रकार का सम्यग्दर्शन हो सकता है, परन्तु पर्याप्त अवस्था में ही हो