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[ ६७ ] बालक की उत्पत्ति का कारण गर्भाशय का होना भी उसको हीन शक्तिक शरीर रचना का हेतु है। इसके सिवा शक्ति का मूल कारण शरीर में वीर्य होता है वह वीर्य ही प्रधान धातु माना गया है। परन्तु स्त्री के वीर्य बनता ही नहीं है किन्तु रज मात्र बनता है। इस लिये वीर्य-शक्ति का अभाव होने से वह पुरुषों के समान पुरुषार्थ करने में सर्वथा असमर्थ है।
२-स्त्री मोक्ष की अधिकारिणी नहीं है इसका दूसरा हेतु यह है कि वह सामर्थ्य कम होने से अथवा शरीरसंहनन हीन होने से वह सोलहवें स्वर्ग से अपर नवप्रैवेयिक अदिश और अनुत्तर विमानों में भी नहीं जा सकती है ऐसा नियम है। यथा
सेव?ण य गम्मदि आदीदो चदुसु कम्पजुगलोति । ततो दुजुगल जुगले खीलिय णाराय णद्धोति ।।
(गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा २६ ) अर्थ-असंप्राप्त-सृपाटिका (सबसे हीन संहनन अन्तिम ) संहनन वाले आदि के चार युगल तक ही स्वर्गों में जा सकते हैं। कीलक संहनन वाले आगे के दो युगलों में उत्पन्न हो सकते हैं तथा अर्धनाराच संहनन वाले जीव उनसे भी आगे के दो युगलोंमें उत्पन्न हो सकते हैं । इस आर्ष प्रमाण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि स्त्री अधिक से अधिक अर्धनाराच संहनन होने के कारण सोलहवें स्वर्ग से ऊपर नहीं जा सकती है। जब कर्म सिद्धान्त की व्यवस्था उसे सोलहवें