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________________ [६६] उपयुक्त कथन से यह बात सिद्ध हो चुकी कि मोक्ष का कारण केवल पहला बनवृषभनाराच संहनन ही है तो जिसके वह पहला संहनन नहीं है वह उस शरीर से मोक्ष जाने का सर्वथा अधिकारी नहीं है। ___ द्रव्यस्त्री के आदि के तीनों संहननों में से एक भी नहीं होता है उसके अन्तिम तीन संहनन होते हैं। यथाअन्तिम तिय संहणणस्सुदो पुण कम्मभूमिमहिलाणं । आदिम तिग संहणणं णस्थित्ति जिणेहिं णिहिटु ॥ (गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा ३२) अर्थ-कर्म भूमि की स्त्रियों के अन्त के तीन संहननों का ही उदय होता है। आदि के तीन संहनन उनके नहीं होते हैं, ऐसा श्री जिनेन्द्रदेव ने कहा है। ___ इस गाथासे यह बात सिद्ध हो जाती है कि जब स्त्रियों के आदि के तीन संहननों में से कोई भी नहीं होता है, तब वह ध्यान की पात्र ही नहीं है। और बिना ध्यानके क्षपक श्रेणी नहीं हो सकती है। अतः स्त्री मुक्ति प्राप्त करने की सर्वथा पात्र नहीं है। स्त्री के आदि के तीन संहनन नहीं होते यह बात जैसे शास्त्राधार से सिद्ध है उसी प्रकार युक्तिसे भी सिद्ध है। त्रियों के स्तन आदि होने के कारण शारीरिक रचना ही इतनी कोमल और शक्तिहीन होती है कि वह कठिन व्यायाम और कठोर आसन आदि के करने में भी सर्वथा असमर्थ है।
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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