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[५०] मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक होते हैं। तथा
एकेन्द्रिय से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक नपुंसकवेद वाले जीव पाये जाते हैं।
यह सब कथन भाववेद की अपेक्षा से है यह बात हम ऊपर स्पष्ट कर चुके हैं। इन सिद्धांत सूत्रों से यह स्पष्ट है कि भाववेद नौवें गुणस्थान तक रहते हैं ।
इसके सिवा गोम्मटसार कर्मकांडमें जहां सत्वव्युच्छत्ति का प्रकरण है वहां ६ ३ गुणस्थान के सवेद भाग तक स्त्री नपुंसक पुवेदों की व्युच्छित्ति बताई गई है। यथा
पंढिस्थि छक्कसाया पुरिसो कोहो य माण मायं च । थूले सुहमो लोहो उदयं वा होदि खीणम्मि ॥
(गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा ३३६) अर्थात्--तीसरे भागमें नपुंसकवेद प्रकृति, चौथे भाग में स्त्रीवेद प्रकृति, पांचवें में हास्यादि छह नोकषाय और छठे मातवें, आठवें, नवमें भाग में क्रमसे पुरुषवेद संज्वलन क्रोध, मान, माया ये सब प्रकृतियां बादर कषाय-नवमें गुणस्थान में व्युच्छिन्न होती हैं। यह तो सत्वव्युच्छित्ति है। उदयव्युच्छित्ति भी इस प्रकार है
अणियट्टी भाग भागेषुवेदतिय कोहमाणं माया संजलरण मेव सुहमंते॥
(गोम्मटसार कर्मकांड गाथा २६८-२६६)