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________________ [४८ ] चौदह गुणस्थान होते तो फिर "अपगतवेद" कैसे बनता । क्योंकि द्रव्यवेद तो चौदहों तक ठहरते हैं। प्रो० सा० द्रव्यवेद की अपेक्षा ही चौदह गुणस्थान बताते हैं। इतना खुलासा कथन षट्खण्डागम धवल शास्त्रों में पाया जाता है। इस कथन से इस सम्बन्ध में कोई शंका खड़ी नहीं रहती है। प्रो० सा० ने अपने लेख में आगे दूसरी बात यह प्रगट की है कि "सूत्रों में जो योनिनी शब्द का प्रयोग किया गया है वह द्रव्य स्त्री को छोड़ अन्यत्र घटित ही नहीं हो सकता ।" इसके उत्तर में हम अधिक अभी कुछ नहीं लिखकर उनसे यही पूछना चाहते हैं कि वे मनुष्यणी के पांचवें गुणस्थान से ऊपर षद्खण्डागम आदि किन्हीं ग्रन्थों में द्रव्य स्त्री के योनिनी शब्द का प्रयोग बतावें तो सही ? तभी उनकी ऊपर की पंक्ति पर विचार किया जा सकता है। जिस प्रकार उन्होंने ग्रन्थों के अभिप्राय के विपरीत अर्थ को प्रमाण कोटि में रखने का प्रयास किया है। उसी प्रकार वे अपनी ओर से नवीन शब्दों का प्रयोग कर बिना किसी आधार के उन्हें भी प्रमाण कोटि में लाना चाहते हैं ? परन्तु केवल पंक्ति लिखने से वस्तुसिद्धि नहीं हो सकती, वे यह बात प्रगट करें कि अमुक शास्त्र में छठे सातवें आदि गुणस्थानों में मनुष्यणीके लिये 'योनिनी' शब्द का प्रयोग पाया है ? अन्यथा जो शब्द ही नहीं उसपर विचार भी क्या किया जाय ?
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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