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द्रव्य पुरुषवेद वाला ही क्षपक श्रेणी का आरोहण करता है । उसी के अनिवृत्तिकरण - नौवें गुणस्थान के सवेदभाग पर्यन्त तीनों भाववेद परमागम में बताये गये हैं । दूसरी संस्कृत टीका में - " द्रव्यपुरुषे एव क्षपकश्रेणिमारूढे" इस पंक्ति द्वारा एव पद देकर 'द्रव्यपुरुष ही क्षपक श्रेणी श्रारूढ़ कर सकता है ' ऐसा नियम स्पष्ट कहा गया है |
प्रो० सा० ने गोम्मटसार तथा धवल सिद्धांत आदि शास्त्रों में स्त्रियों के चौदह गुणस्थानों का कथन देखा है उसे देखकर वे समझ रहे हैं कि स्त्री भी मोक्ष जाती है । परन्तु दिगम्बर शास्त्रों के प्रमाण जो उन्होंने दिये हैं वे सब उन शास्त्रों का अभिप्राय नहीं समझकर ही दे डाले हैं ।
ऊपर के प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध है कि गोम्मटसार मूल में द्रव्यवेद, भाववेद को सम विषम दोनों रूप में बताया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि क्षपक श्रेणी द्रव्यपुरुषवेदी ही माढ़ सकता है । साथ ही साथ यह भी ग्रन्थकार ने स्पष्ट कर दिया है कि नौवें गुणस्थान तक जो स्त्रीवेद व नपुं - सकवेद बतलाये गये हैं वे द्रव्यवेदी पुरुष के ही भाववेद बतलाये गये हैं । इतना स्पष्ट कथन मूल गोम्मटसार का और उसी के अनुसार टीका का होने पर भी प्रो० सा० का यह कहना कि 'यह व्याख्यान सन्तोषजनक नहीं है', निःसार एवं गोम्मटसार ग्रन्थ के सर्वथा विपरीत है। इसके सिवा • प्रो० सा० द्वारा सम्पादित षट् खण्डागम सिद्धान्त शास्त्रों में भी