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[३६] शंका समाधान के साथ किये गये इस बहुत खुलासा मे हिन्दी अर्थ को समझने वाला साधारण पुरुष भी अच्छी तरह जान लेगा कि भाववेद की अपेक्षा से ही चौदह गुणस्थान कहे गये हैं। ग्रन्थकार ने मनुष्य गति की प्रधानता बताकर उपचार से ही भाववेद की अपेक्षा चौदह गुणस्थान बताये हैं। इस उपचार कथन से द्रव्य स्त्री के चौदह गुणस्थानों की सम्भावना का प्रश्न ही खड़ा नहीं हो सकता है।
इस षट् खण्डागम-धवला टीका के मुख्य सम्पादक प्रो० हीरालाल जी हैं। जब वे मुख्य सम्पादक हैं तब इतना खुलासा धवला टीकामें होने पर भी प्रो० सा० षट् खण्डागमके उसी ६३ वें सूत्र का प्रमाण प्रगट कर उससे द्रव्य स्त्री को मोक्ष प्राप्ति होना किस प्रकार से सिद्ध करते हैं ? स्त्री मुक्ति में ६३ वें सूत्र का प्रमाण देने के पहले उन्हें उस सूत्रका संस्कृत या हिन्दी अर्थ तो जान लेना चाहिये था। सर्वज्ञ-प्रणीत अनादि सिद्ध दिगम्बर सिद्धान्तों का इस प्रकार अपलाप करना तो सर्वथा अनुचित है।
इसके आगे प्रो० सा० ने जो षट्खण्डागम की द्रव्यप्ररूपणा, क्षेत्र-प्ररूपणा, स्पर्शन-प्ररूपणा, काल-प्ररूपणा, अन्तर-प्ररूपणा और भाव-प्ररूपणा के सूत्रों की केवल संख्या देकर यह बतलाया है कि इनसे भी स्त्री के चौदह गुणस्थान सिद्ध होते हैं। सो उनके इन उल्लिखित सभी सूत्रों को और उनपर की गई धवला टीकाको देखनेसे स्पष्ट प्रतीत हो जाता है