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कि कहीं भी द्रव्य स्त्री के चौदह गुणस्थान सिद्ध नहीं होते हैं, किन्तु भाव स्त्री की अपेक्षा ही चौदह गुणस्थान बताये गये हैं । स्त्रीवेद से संयत गुणस्थानों में भाव-वेदी स्त्री ही ली गई है । अपगत वेद स्थानों में भाव वेदस्त्री के चौदह गुणस्थान उपचार से कहे गये हैं । वहां मनुष्यगति की प्रधानता है जो कि ६ वें गुणस्थान तक भाववेदों की सहगामी रही है । यह बात सत्प्ररूपणा में ग्रन्थकार बहुत खुलासा कर चुके हैं जैसा कि ऊपर हम सप्रमाण लिख चुके हैं। इस लिये अब पिष्टपेषण एवं पुनरुक्ति करना व्यर्थ है ।
उन्होंने सर्वार्थ सिद्धि और गोम्मटसार शास्त्रों के प्रमाणों से द्रव्य स्त्री के लिये मुक्ति प्राप्ति बताई है सो उन ग्रन्थों के विषय में भी हम यहां पर विचार करते हैं ।
प्रो० सा० ने लिखा है कि
"पूज्यपाद कृत सर्वार्थ सिद्धि टीका तथा नेमिचन्द्रकृत गोम्मटसार ग्रन्थ में भी तीनों वेदोंसे चौदहों गुणस्थानोंकी प्राप्ति स्वीकार की गई है, किन्तु इन ग्रन्थों में संकेत यह किया गया है कि यह बात केवल भाववेद की अपेक्षा से घटित होती है इसका पूर्ण स्पष्टीकरण श्रमितगति (?) वा गोम्मटसार के के टीकाकारों ने यह किया है कि तीनों भाववेदों का तीनों द्रव्य वेदों के साथ पृथकू २ सम्बन्ध हो सकता है जिसके नौ प्रकार के प्राणी होते हैं । इसका अभिप्राय यह है कि जो मनुष्य द्रव्य से पुरुष होता है वही तीनों वेदों में से किसी भी