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स्थान प्राचार्यों की श्रेणी में असाधारणतापूर्ण वैशिष्टय रखता है। उसके अनेक कारण हैं, उनका अनुभव पूर्ण पांडित्य भी असाधारण कोटि में गिना जाता है। सिद्धांत रहस्य और कर्मसिद्धांत के वे कितने मर्मज्ञ थे यह बात उनके महान् प्रन्थों से सर्व विदित है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व उनका विदेह क्षेत्रस्थ स्वामी सीमंधर तीर्थकर के साक्षात् दर्शनों से प्रसिद्ध है। ऐसे महान ऋषि पुङ्गव, उट विद्वान् , आचार्यप्रधान भगवान कुन्दकुन्द कर्म सिद्धान्त और गुणस्थान चर्चा की व्यवस्थित विवेचना से अनभिज्ञ हैं अथवा बिना उक्त विवेचना के उन्होंने यों ही स्त्री-मुक्ति आदि का खण्डन कर डाला है ये सब बातें सर्वथा निःसार एवं अग्राह्य हैं। आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के अगाध पाण्डित्य एवं तात्विक गंभीरतापूर्ण शास्त्रों के मनन करने वाले आचार्य भी उन्हें महती श्रद्धा के साथ मस्तक झुकाते हैं। उन्हें इस युग के गणधर तुल्य और दिगम्बर जैनधर्म के इस युग के मुख्य प्रवर्तक समझते हैं।
आचार्य कुंदकुंद स्वामी को जो प्रो० सा० आज कर्मसिद्धान्त और गुणस्थान-चर्चा के अजानकार बताते हैं वे ही प्रो० सा० धवल सिद्धान्त ग्रन्थ के सम्पादक के नाते उस ग्रन्थ की भूमिका में स्वयं उक्त आचार्यवर्य के विषय में क्या लिख चुके हैं, यहां पर पाठकों की जानकारी के लिये हम उनकी पंक्तियां ही रख देते हैं