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[ २७ ] किसी भी आचार्य के मत से सिद्ध नहीं हो सकती है।
प्रो० सा० ने जो भगवान कुन्दकुन्द स्वामी के विषय में उमास्वामी आचार्य से मतभेद प्रगट कर उमास्वामी आचार्य के मत से सवस्त्र मुक्ति और केवली कवलाहार आदि की सिद्धि की है सो उनका ऐसा लिखना भी भ्रमपूर्ण है क्योंकि उमास्वामी विरचित तत्वार्थसूत्र द्वारा स्त्री-मुक्ति आदि की सिद्धि किसी प्रकार भी नहीं हो सकती है, उपर्युक्त तीनों मन्तव्यों का उसमें स्पष्ट खंडन है । भगवान कुन्दकुन्द के सम्बंध में जो प्रोफेसर साहबने यह लिखा है कि "कुन्दकुन्दाचार्य ने जो अपने ग्रन्थों में स्त्री-मुक्ति आदि का खण्डन किया है वह उन्होंने गुणस्थान - चर्चा और कर्मसिद्धान्त की व्यवस्था के अनुसार नहीं लिखा है ।" प्रो० साहबका यह लिखना विद्वानों की दृष्टि में अविचारपूर्ण है । हमें आश्चर्य है कि भगवान कुन्दकुन्द के विषय में ऐसा लिखने का साहस प्रोफेसर साहब
किस प्रकार कर डाला जिन आचार्य कुन्दकुन्द को सामयिक सभी आचार्य सर्वोपरि एवं सिद्धान्त रहस्य के प्रधानवेत्ता मानते हैं। जो भगवत् कुन्दकुन्दाचार्य मूलसंघ के अनुप्रवर्तक नायक हैं, शास्त्र प्रवचन में सर्वत्र उनका नाम आचार्य परम्परा में प्रथम घोषित किया जाता है । यथा
मंगलं भगवान वीरो मंगलं गौतमो गणिः मंगलं कुन्दकुन्दायो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥
इन सब बातों के अतिरिक्त आचार्य कुन्दकुन्द का