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[ १४६] हमारी सम्मति काल दोष से विगत २५ वर्षों में सर्वज्ञ-प्रणीत दि० जैन आगम पर उसी के अनुयायी महानुभावों द्वारा ऐसे ऐसे भीषण आक्षेप किये गये हैं जिनसे कि दि० जैनधर्म की मूल मान्यताओं को गहरी ठेस पहुंची है। यह समय बुद्धिवाद का है, श्रद्धा की उत्तरोत्तर हानि होती जा रही है, अतः कुमतिज्ञान के प्रभाव से लोग बुद्धि-विभ्रम में फंसकर किसी भी नये मार्ग को सहज अपना लेते हैं। यही कारण है कि आज दि० मैन धर्मानुयायी भी सत्यपन्थ को छोड़कर विभिन्न २ मान्यताओं के अनुयायी बन गये हैं और बनाये जा रहे हैं। नाना प्रकार की नई नई मान्यतायें और नई नई प्रकट होने लगी हैं। बा० अर्जुनलालजी सेठी और पं० दरबारी लाल जी सत्यभक्त के आगम-विरोधी विचारों को तो अभी सक समाज भूला नहीं था कि धवलाके संपादन से प्रसिद्धि प्राप्त प्रो० हीरालाल जी ने दि० जैनधर्म के अस्तित्व का ही विलोप करना प्रारम्भ कर दिया है। उनकी समझ से श्वेताम्बरधर्म ही पुरातन और सर्वज्ञप्रणीत है।
यद्यपि इस प्रकार के स्वतन्त्र विचार प्रमाण सिद्ध दि० जैन आगम को तो कुछ भी धक्का नहीं पहुंचा सकते परन्तु धवला टीका के सम्पादन से जिनके विचार में प्रोफेसर साहब का सम्मान जम गया है और जो उनके सैद्धान्तिक ज्ञान से प्रभावित हो गये हैं उनके श्रद्धान में अवश्य अन्तर आ सकता