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________________ [ १४५ ] से ही अमुक २ ने मोक्ष प्राप्त की, ऐसा ही सभी पुराणों में कथन पाया जाता है। आदिनाथ भगवान ने अपनी पुत्री ब्रा और सुन्दरी से कहा था कि तुम इस स्त्री - पर्यायसे मोक्ष नहीं पा सकती हो। केवली भगवान के परम शुद्धि और दिव्य श्रदारिक शरीर, अनन्त अचिन्त्य गुणों का प्रगट होना, अनेक अतिशय प्राप्त होना आदि बातों का वर्णन है । इस लिये यदि प्रोफेसर साहब के तीनों मन्तव्य दिगम्बर शास्त्रोंसे भी सिद्ध होते तो उनका वर्णन पुराण शास्त्रों में भी कहीं तो पाया जाता, परन्तु वैसा वर्णन किसी भी प्रथमानुयोग शास्त्र में नहीं पाया जाता । प्रत्युत उन प्रथमानुयोग शास्त्रों में भी उक्त तीनों मन्तव्यों का सर्वत्र स्पष्ट खण्डन मिलता है । इस लिये दि० सिद्धान्तानुसार कर्म सिद्धांत और गुणस्थानों के आधार पर उक्त तीनों मन्तव्य किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं हो सकते हैं । और दिगम्बर शास्त्रों में सर्वत्र उन का खण्डन किया गया है । श्रागम, अधिक लिखना अनावश्यक समझकर प्रो० सा० से हम यह आशा करते हैं कि वे अपने मिथ्या मन्तव्यों को युक्ति एवं अनुभव विरुद्ध समझकर छोड़ देंगे। इतना ही नहीं किन्तु निष्पक्ष एवं सरल भावों से अपने भ्रमपूर्णं अभिप्रायों का परित्याग कर समाज के समक्ष वैसी घोषणा कर देंगे । विकल्मषमनेकान्तं वस्तुतत्वप्रकाशकम् । अनाद्यनन्तसंसिद्धं जीया हैगम्बरं मतम् ॥ मक्खनलाल शास्त्री, सम्पादक- जैनबोधक, मेम्बर- ओकाफ कमेटी ग्वालियर राज्य
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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