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[१८] मोक्षमार्ग माना जाय तो फिर नमताका जो मोक्षमार्ग विधायक सिद्धान्त है वह व्यर्थ ठहरेगा ? क्योंकि जब हाथ से ही फल तोड़ लिया जाय तो फिर वृक्षपर चढ़ने की किसको भावश्यकता होगी ? इसी प्रकार जब वस्त्र धारण किये हुए भी मोक्ष मिल जाय तो फिर त्याग करने की क्या आवश्यकता रहेगी? इस कथन से स्पष्ट है कि बिना दव-त्याग किये अथवा नम्रता धारण किये बिना मोक्ष-प्राप्ति असम्भव है, यही दिगम्बर मत का सिद्धान्त है।
इसके आगे प्रो० सा० ने लिखा है
"चकुश निर्ग्रन्थ तो शरीर संस्कार के विशेष अनुवर्ती कहे गये हैं, यद्यपि प्रतिसेवना कुशील के मूल गुणों की विराधना न होने का उल्लेख किया गया है। तथापि द्रव्यलिंग से. पांचों ही निग्रन्थों में विकल्प स्वीकार किया गया है।"
: प्रो० सा० की इन पंक्तियों से मुनि सबस्न भी रह सकते हैं-यह बात कौन से शब्द या पद से सिद्ध होती है सो पाठकगण ही समझ लेवें। फिर पांचों ही निर्ग्रन्थों में सिकल्प कहां से सिद्ध होता है ? अर्थात कहीं से भी नहीं होता। जबकि हम इन्हीं सूत्रों और सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक
आदि प्रस्थों से पांचों प्रकार के मुनियों के वस्त्र-त्याग अनिवार्य और परमावश्यक सिद्ध कर चुके हैं तब 'सबल भी मुनि रह सकते हैं। इस विकल्प को कहीं भी स्थाननहीं है।
रही वकुश मुनि के शरीर-संस्कार की बात; मो यह