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________________ [७] है। ममत्वभाव ही वस्त्र आदि परिग्रह का कारण है जिसके ममत्वभाव नहीं रहता वह वस्त्रादि सभी परिग्रह का त्याग कर देता है। इस लिय वस्त्र सहित अवस्था में निर्मन्थ रूा मुनिपद कभी सिद्ध नहीं हो सकता है। अतः पांचों प्रकार के मुनि वस्त्रादि परियह के पूर्ण त्यागी होते हैं। श्लोकवार्तिककार स्वामी विद्यानन्दि ने वस्नत्याग के लिये ऊपर कितना जोरदार कथन किया है यह बात ऊपर के कथन से पाठकगण अच्छी तरह समझ लेंगे। पात्रकेसरी स्तोत्र में लिखा है दिगम्बर धर्ममें वन त्याग अथवा नम्रता का ही विधान है। इस बात को प्राचार्य विद्यानन्द ने कितना स्पष्ट कहा है जिनेश्वर न ते मतं पटकवस्त्रात्रहो, विमृश्य सुख कारणं स्वयमशक्तकैः कल्पितः । अथायमपि सत्पथस्तव भवेवृथा नम्रता, न हस्तसुलभ फले सति तरुः समारुह्यते ।। (पात्रकेसरी स्तोत्र ४१) अर्थात-स्त्रों का धारण करना और भिक्षा के लिये पात्र का ग्रहण करना आदि बातें; हे जिनेन्द्र भगवन् ! आप के मत में मान्य नहीं हैं। ये बातें तो दूसरे अशक्त मत वालों ने सुख का कारण समझ कर मान ली हैं। यदि वस्त्र धारण करना मादि आपके मन (दिगम्बर मत ) में श्रेष्ठ माग,
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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