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________________ [५] ४६ वें सूत्र और राजवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि प्रादि टीकाओं से विपरीत है। .. अब तीसरा प्रमाण तत्वार्थ-सूत्र के ४६ वें सूत्र का अर्थ श्लोकवातिक द्वारा भी हम स्पष्ट करते हैं पुलाकाद्या मता पंच निर्ग्रन्था व्यवहारतः। निश्चयाच्चापि नैन्थ्य सामान्यस्याविरोधतः॥ वस्त्रादिग्रन्थसम्पन्ना स्ततोन्ये नेति गम्यते । बाह्यप्रन्थस्य सद्भावे ह्यन्तर्ग्रन्थो न नश्यति ।। ये वस्त्रादि-प्रहेप्याहु निर्ग्रन्थत्वं यथोदितम् । मूर्छानुभूतितस्तेषां स्त्र्याचादानेपि किं न तत् ॥ विषयग्रहणं कार्य मूळ स्यात्तस्य कारणम् । न च कारणविध्वंसे जातु कायस्य संभवः॥ (श्लोकवार्तिक सूत्र ४६ पृष्ठ ५०७) श्रीमत् परवादिभयंकर आचाय विद्यानन्दि स्वामी ने मुनि के वस्त्र-त्याग का विधान अत्यावश्यक एवं अनिवार्य बताते हुए ऊपर की कारिकाएं लिखी हैं। इन कारिकाओं का अर्थ यह है- व्यवहारनय से पांचों प्रकार के पुलाक आदि मुनि निर्ग्रन्थ-नम माने गये हैं। निश्चयनय से भी सामान्य रूप से पांचों में निम्रन्थपना है इसमें कोई सन्देह नहीं है। जो वत्र आदि परिग्रहयुक्त हैं वे किसी प्रकार के मुनि नहीं हो सकते हैं। अर्थात मुनिपद बिना-नमता के नहीं हो सकता
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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