________________
[४] इन पंक्तियों में पुलाकादि पांचों मुनियों के विषय में शंका उठा कर समाधान किया गया है वह इस प्रकार है
जिस प्रकार गृहस्थों में भिन्न भिन्न प्रकार का चारित्र भेद होने से वे निर्मन्थ नहीं कहे जाते हैं, उसी प्रकार पुलाक प्रादि पांचों प्रकार के मुनियों में भी उत्तम,मध्यम चारित्रभेद है, इस लिये वे भी सबनिन्थ नहीं होने चाहिये ? ।
इस शंका के उत्तर में प्राचार्य कहते हैं कि यह शंका ठीक नहीं है क्योंकि जिस प्रकार चारित्र, अध्ययन (पठनपाठन ) आदि बातों से समस्त ब्राह्मणों में परस्पर भेद भी है फिर भी वे सभी ब्राह्मण ही कहे जाते हैं। उसी प्रकार पांचों मुनियों में परस्पर चारित्रभेद रहने पर भी सभी मुनि निम्रन्थ (नग्न ) ही होते हैं।
इसी बात को प्राचार्य स्पष्ट करते हुए और भी कहते है कि सम्यग्दर्शन सबों में पाया जाता है और वस्त्र, पाभरण, मायुध आदि परिग्रह रहित निप्रन्थ लिग नमरूप समस्त मुनियों में समान रूप से पाया जाता है। अर्थात् पांचों ही पुलाकादि मुनि सम्यग्दृष्टि हैं और सभी नमरूपधारी हैं।
तत्वार्थ राजवार्तिक की इन पंक्तियों में यह बात खुलासा कर दी गई है कि दिगम्बर जैन सिद्धान्तानुमार मुनि मात्र के लिये वस-त्याग अनिवार्य एवं प्रमुख मूल गुण हैं। उसके बिना मुनि ही नहीं कहा जा सकता। प्रो० सा० का यह कहना कि 'वस-त्याग मुनियों के लिये अनिवार्य नहीं है' सर्वथा