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[१२] पुलाकच कुशकुशील निर्ग्रन्थस्नातका निन्थाः ।
( तत्वार्थसूत्र ४६) इसका यह अर्थ स्पष्ट है कि मुनि पांच प्रकार के होते हैं। उनके ये पांच भेद हैं-पुलाक, बकुश, कुशील, निर्मन्थ, स्नातक। ये पांच प्रकार के मुनि निम्रन्थ ही होते हैं अर्थात उन पांचों के अन्य गुणों में तथा कषाय के तरतम भेदों में सो भेद रहता है, परन्तु नमत्व की दृष्टि से कोई भेद उनमें नहीं है। पांचों ही प्रकार के मुनि निम्रन्थलिंग-धारी नम्र दिगम्बर होते हैं।
यह इस सूत्र का अर्थ है। अब सर्वार्थसिद्धि को देखिये
___ "त एते पश्चापि निम्रन्थाः । चारित्र-परिणामस्य प्रकर्षाप्रकर्षभदे सत्यपि नैगमसंग्रहादिनयापेक्ष्या सर्वेपि ते निम्रन्थाः इत्युच्यन्ते।"
(सर्वार्थ सिद्धि पृष्ठ ३११) इन पंक्तियों का यह अर्थ है कि पुलाक, बकुश, कुशील, निर्मन्थ स्नातक ये पांचों प्रकार के मुनि सभी निम्रन्थ अर्थात वस्त्र-रहित नम दिगम्बर होते हैं। यद्यपि पांचों प्रकार के मुनिराजों में चारित्र की अपेक्षा विशुद्धि में तरतम भेद है। अर्थात उन मुनियों की विशुद्धि में परस्पर हीनाधिकता पाई माती है फिर भी नैगम संग्रह आदि नयों की अपेक्षा से वे पांचों ही निर्ग्रन्थ (नम ) हैं।