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[११] श्यक है। लेख बढ़ने का भय भी है।
दूसरा प्रमाण साख संयम और मवत्र मुक्ति प्राति के सिद्ध करने के लिये प्रो० सा० ने तत्वार्थ मूत्र, सर्वार्थसिद्धि व राजबार्तिक ग्रन्थों के दिये हैं। वे लिखते हैं कि -
"तत्वार्थसूत्र में पांच प्रकार के निग्रन्थों का निर्देश किया गया है जिनका विशेष रूप सर्वार्थसिद्धि व राजवार्तिक टीका में समझाया गया है। ( देखो अध्याय ६ सूत्र ४६-४७) इसके अनुसार कहीं भी वस्त्रत्याग अनिवार्य नहीं पाया जाता, बल्कि बकुश निर्ग्रन्थ तो शरीर-संस्कार के विशेष अनुवर्ती कहे गये हैं।"
प्रो० सा० की ऊपर की पंक्तियों को पाठक ध्यान में पढ़ लेवें। उन्होंने तत्वार्थ के उक्त सूत्रों का प्रमाण देकर यह बताया है कि इन सूत्रों में मुनिके वस्त्र त्याग अनिवार्य (जरूरी) नहीं पाया जाता है। वे सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक टीका का भी प्रमाण इसी रूप में प्रगट करते हैं। __ परन्तु उनका यह सब लिखना सर्वथा विपरीत है। मूल सूत्र-तत्वार्थसूत्र और उसकी टोका, सर्वार्थसिद्धि. राजवार्तिक तथा श्लोकवार्तिक तोनों टीकाओंसे यह बात स्पष्ट सिद्ध है कि मुनि के लिये वस्त्रों का त्याग परमावश्यक हैबिना वस्त्रत्याग के उसे मुनिपद में ग्रहण नहीं किया जा सकता है। इसी बात को हम नीचे तीनों ग्रन्थों से १६ष्ट करते हैं
पहले तो मूल सत्र को ही ले लीजिये ---