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________________ ३९ पत्र .१३८ १३८ १३८ १३० १४१ १४२ १४२ १४२ १४२-४६ गाथा विषय १३ भन्यमार्गणामां भव्य अभव्यनी व्याख्या १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी वेदकसम्यक्त्वनी व्याख्या १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी क्षायिकसम्यक्त्वनुं स्वरूप १३ सम्यक्त्रमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी औपशमिकसम्यक्त्व, तेना बे भेदो अने प्रन्थिभेदन स्वरूप १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी मिथ्यात्व, मिश्र, त्रण पुञ्ज अने सासादन- खरूप १३ संशिमार्गणामां संज्ञि असंझिनी व्याख्या १४ आहारकमार्गणाना भेद अने मार्गणस्थानमा जीवस्थान १४ आहारक अनाहारकनी व्याख्या अने चौदमूलमार्गणाना बासठ उत्तरभेदोनां नाम १४-१८ मार्गणस्थानना उत्तरभेदो पैकी कया कया भेदमां कयां कयां जीवस्थान होय ? तेनुं स्वरूप अपर्याप्तसंझिने औपशमिक सम्यक्त्व न होवाना अने होवाना मतनुं निरूपण सम्मच्छिममनुष्यनी उत्पत्तिना स्थानो वादर अपर्याप्तने तेजोलेश्या केम सम्भवे ? ए शङ्कानुं निवारण १९-२३ चौदमार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कयां कयां गुणस्थान होय ? तेनुं स्वरूप २४ योगोनी सङ्ख्या अने मार्गणास्थानमा योग २४ सत्यमनोयोग आदि पंदर योगोनुं सप्रमाण स्वरूपनिरूपण २४ कार्मणशरीर गत्यंतरमा साथे जाय छे तो केम देखातुं नथी? ए शङ्कार्नु समाधान तेजसने शरीर मान्युं छे तो तेने योगमां केम गण्यु नथी ? एनुं समाधान २४-२९ चौद मार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कया कया योगो होय ? तेनुं स्वरूप २९ वैक्रियलब्धिवाला अने मिश्रगुणस्थानवाळा मनुष्यतिर्यबोने वैक्रियना आरंभनो सम्भव होवा छतां वैक्रियमिभ केम न होय ? ए शङ्कानुं समाधान १४२-४३ १४४ १४४ १४७-४९ १५० १५० १५४ १५४ १५४-६० १५८
SR No.010087
Book TitleChatvara Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1934
Total Pages289
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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