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________________ 'गाथा १३४ १34 १३५ १३५ विषय कल्पद्वारमा परिहारविशुद्धिक स्थितकल्प अने अस्थितकल्प पैकी कया कल्पमां होय ? तेनु स्वरूप लिङ्गद्वारमा परिहारविशुद्धिक द्रव्यलिङ्ग अने भावलिङ्ग पैकी कया लिङ्गमां होय तेनुं स्वरूप लेश्याद्वारमा परिहार विशुद्धिकने कृष्णादि छ लेश्या पैकी कई लेश्याओ होय ? तेनुं स्वरूप ध्यानद्वारमा परिहारविशुद्धिकने आादि चार ध्यान पैकी कयां होय ? तेनुं स्वरूप गणद्वारमा परिहारविशुद्धिकनी जघन्य अने उत्कृष्टथी गणसङ्ख्या अने पुरुषसङ्ख्या केटली होय? तेनुं स्वरूप अभिप्रहद्वारमा परिहारविशुद्धिकने द्रव्यादि चार अभिग्रह पैकी कोई पण अभिग्रह होय के न होय ? तेनुं स्वरूप प्रव्रज्याद्वारमा परिहारविशुद्धिक कोईने प्रत्रज्या आपे के न आपे? तेनुं स्वरूप मुण्डापनद्वारमा परिहार विशुद्धिक कोईने मुण्डे के न मुण्डे ? तेनुं स्वरूप प्रायश्चित्तद्वारमा परिहार विशुद्धिकने कयां प्रायश्चित्त होय ? तेनुं स्वरूप कारणद्वारमा परिहारविशुद्धिकने कारण एटले आलम्बन होय के न होय ? तेनुं स्वरूप निष्प्रतिकर्मताद्वारमा परिहार विशुद्धिक निष्प्रतिकर्म होय के अ. निष्प्रतिकर्म होय? तेनुं स्वरूप भिक्षाद्वारमा परिहार विशुद्धिकना भिक्षा अने विहार कया कालमां होय ? तेनुं स्वरूप परिहारविशुद्धिकना इत्वर अने यावत्कथिक वे भेदो आदिनुं स्वरूप १२ संयममार्गणाना उत्तरभेदोमांथी सूक्ष्मसम्पराय, यथाख्यात, देशविरत अने अविरतसम्यग्दृष्टिनी व्याख्या १२ दर्शनमार्गणाना चक्षुदर्शन आदि चार उत्तर भेदोनी व्याख्या १३ लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व अने संझिरूप मार्गणाना उत्तर भेदो १३ लेश्यामार्गणामा छ लेश्यानां नाम १३६ १३६ . १३८ १५८
SR No.010087
Book TitleChatvara Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1934
Total Pages289
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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