________________
खसंझक पुस्तक ताडपत्र उपर लखायेलुछे अने ते सटीक पांच कर्ममंथतुं छे. तेनां पत्र २ थी ३०६ छे. प्रति अंतमां कांइक त्रुटक छे. तेमी लंबाई २२॥ इंच भने पहोलाई २। इंचनी छे. पुस्तकनी दरेक पुंठीमां वधारेमा बधारे ७ अने पोछामा ओछी ६ पंकिओ छे. प्रतिनो अंत्यभाग नहि होवाथी लेखनकाल आदिने लगती पुष्पिका विगेरे काइ पण आ ठेकाणे आपी शकवू अशक्य छे. तो पण लिपि जोतां चौदमी शताब्दीमा अंउमां आ प्रति लखायानो संभव छे. पुस्तकनी स्थिति साधारण छे.
क-खसंज्ञक पुस्तकमां पंक्तिओ एक सरखी नहि होवाना कारणे पंक्तिना अबरोनी नोंध अहीं आपी नथी.
गसंज्ञक पुस्तक-आ पुस्तक पाटणना रहेवासी शा. मलुकचंद दोलाचंद हस्तकनु छे अने ते कागल उपर लखायेलुं छे. आ प्रतिमां सटीक छए कर्मग्रंथ छे. एनां पानां २८२ छे. प्रतिनी लंबाई १०॥ इंच अने पहोलाई ४॥ इंचनी छे. आ प्रतिनी दरेक पुंठीमा १५ पंक्तिओ छे. पंक्तिदीठ ओछामा ओछा ५० अने वधारेमां वधारे ६२ अक्षरो छे. आ प्रतिना अंतमा लेखन काल आदीनो कशोय उल्लेख नथी तेम छतां लिपि जोतां प्रति १७ मी शताब्दीना प्रारंभमां लखायानो संभव छे. पुस्तकनी स्थिति सारी छे.
घसंज्ञक पुस्तक-आ पुस्तक पाटण फोफलीया वाडानी आगली शेरीना तपागच्छीय पुस्तकभंडारनुं छे. आ पुस्तकभंडार तेना ट्रस्टीओ पैकी हाल सा. मलुकचंद दोलाचंदनी देखरेख नीचे छे. प्रति कागल उपर त्रिपाठमां लखाएकी छे बने तेमां सटीक छ कर्मग्रंथो छे. तेनां पत्र ११९ छे. प्रतनी लंबाई १०॥ इंच अने पहो. लाई ४॥ इंचथी कांइक ओछी छे. आ प्रतिनी कोई पुंठीमां २४ तो कोईमा २५-२६ अने २७ एम ओछी वत्ती पंक्तिओ छे. पंक्तिदीठ कममां कम ६३ अने अधिकमां अधिक ८१ अक्षरो छे. प्रतिनी स्थिति घणी ज सारी छे. प्रतिना अंतमां नीचे प्रमाणे पुष्पिका छे.
"संवत् १६०६ वर्षे कार्तिकशुद ४ गुरौ दिने लिखितम् ।छ। शुभं भवतु ॥"
उसंज्ञक पुस्तक-आ पुस्तक वडोदराना आत्मानन्द जैनज्ञानमन्दिरमा पूज्य प्रवर्तक श्रीमत्कान्तिविजयजी महाराजनो पुस्तकसंग्रह छे तेमांनुं छे. ए भंडार आत्मानन्द जैनज्ञानमन्दिरना सेक्रेटरी शा• जीवणलाल किशोरदास कापडीयानी देखरेख नीचे छे. आ प्रति कागल उपर लखायेली छे अने तेमां सटीक पांच कर्मग्रंथ छे. तेनां पत्र १५४ छे. प्रतिनी लंबाई १३ इंचथी कांइक कम अने पहोलाई ५। इंचनी छे. आ प्रतिनी प्रत्येक पुंठीमा १७ पंक्तिओ छे अने पंक्तिदीठ कोई पंक्तिमा कममां कम ६४ अने अधिकमां अधिक ६७ अक्षरो छे. आ प्रतिना अंतमा लेखनकाल विगेरेनो उल्लेख नथी. लिपि जोतां ए प्रति १७ भी शताब्दीमा लखायानो संभव छे. प्रतिनी स्थिति घणी सारी छे.