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________________ २२ प्रतिओनी शुद्धाशुद्धिनो विचार-क-ख-ग-ध अने डसंज्ञक प्रतिओमां थोडे धणे मंशे अशुद्धिओ तो दरेकमा छे ज, तो पण परस्पर तारतम्यतानो विचार करतां बधीये प्रतिओमां क अने घ आ बे प्रतिओ सौ करतां सारामां सारी छे. बाकीनी खग अने छ आ त्रण प्रतिओमां ख प्रति सारी छे अने गङ आ बे प्रतिओमाथी ग प्रति सारी छे. अर्थात् एक बीजाथी उत्तरोत्तर अधिक अशुद्ध छे. आभार-आ विभागनुं संपादन करती वखते उपरनी पांच प्रतिओनो उपयोग करवामां आव्यो छे. ए पांचे प्रतिओना जुदा जुदा मालिकोए प्रतिओ आपी अमारा संशोधनना कार्यमा जे सुगमता करी आपी छे ते बदल पमहाशयोना उपकारने कोई रीते पण भूली शकाय तेम नथी. वळी आ भागनुं संपादन करती वखते पं. सुखलालजीए हिंदी भाषामां करेला नवीन चार कर्मग्रंथना अनुवादनो अने तेनी प्रस्तावनानो कोई कोई ठेकाणे आश्रय लीधेलो होवाथी तेमनो पण उपकार मानुं छु. अने छेवटमां मारा विद्वान् शिष्य मुनि श्रीपुण्यविजयजीए आ विभागना प्रत्येक फॉर्मनुं अंतिम प्रुफ तपासी आपी अने संपादनने लगता वीजा कार्यने अंगे जोइती मदद आपी मारा कार्यने जे सरल करी आप्युं छे ते माटे तेओनो पण आ ठेकाणे उपकार मार्नु कुंए सर्वथा उचित लेखाशे. उपरोक्त पांचे प्रतिओना आधारे बहु ज सावधानता पूर्वक आ विभागर्नु संशोधन कर्यु छे तो पण कोइक ठेकाणे दृष्टिदोष आदिना कारणे त्रुटि रहेवा पामी होय तो वाचक महाशयो सुधारी वांचे ए अंतिम प्रार्थना साथे विरमुं . मुनि चतुरविजय.
SR No.010087
Book TitleChatvara Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1934
Total Pages289
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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