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________________ महावीर -----------. . . . ३. निश्चयः उस समय के उनके जीवन का विस्तार सहित विवरण यहाँ देना अशक्य है। उनमें से कुछ प्रसंगों का ही उल्लेख किया जा सकेगा । अपने साधना-काल में उन्होंने बाचरण सम्बन्धी कुछ बात तय की थी। पहली यह कि दूसरे की मदद की अपेक्षा न रखना, अपने पुरुषार्थ और उत्साह से हो ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पाना। उनका अभिप्राय था कि अन्य को सहायता से ज्ञान प्राप्त हो ही नहीं सकता। दूसरी यह कि जो उपसर्ग और परीपहर उपस्थित हों उनसे बचने की चेष्टा न करना । उनका ऐसा अभिप्राय था कि उपसर्ग और पपेषह सहन करने से ही पापकर्म क्षय होते हैं और चित्त को शुद्धि होती है । दुःख मात्र पाप कर्म का फल है और वह जय था पड़े तो उसे दूर करने का प्रयत्न आज होनेवाले दुःख को भविष्य की बोर ठेलने जैसा है। क्योंकि फल भोगे. बिना कभी निस्तार नहीं होता। ५. उपसर्ग और परीषहः इसलिए पारह वर्ष उन्होंने ऐसे प्रदेशों में घूमते हुए बिताये जिनमें उन्हें अधिक से अधिक कष्ट हो। जहां के लोग क्रूर, भातिथ्य भावनासे विहीन, सं-द्रोही, गरीबों को त्रास देनेवाले, निष्कारण - १-दूसरे प्राणियों द्वारा उपस्थित विन एवं क्लेश। -नैसर्गिक आपति।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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