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साधना
१. महावीर पद :
पर
घर से निकलने के साथ ही वर्धमान ने कभी भी किसी. क्रोध न करने और क्षमा को अपने जीवन का व्रत [मानने 'का निश्चय किया था । साधारण वीर बड़े पराक्रम कर सकते हैं, सच्चे क्षत्रिय विजय मिल जाने पर शत्रु को क्षमा कर सकते हैं, लेकिन वीर भी क्रोध पर विजय नहीं पा सकते और जब तक पराक्रम करने की शक्ति रहती है तब तक क्षमा नहीं कर सकते । बर्धमान पराक्रमी तो थे ही, लेकिन साथ ही उन्होंने क्रोध को भी hi में किया और शक्ति के रहते हुए क्षमा-शील होने की सिद्धि प्राप्त कर ही । इसीलिए वे महावीर कहलाऐ ।
२. साधना का बोध :
घर से निकलने के बाद महावीर का १२ वर्ष का जीवन इस बात का उत्तम उदाहरण है कि तपश्चर्या का कितना उम्र से उभ स्वरूप हो सकता है, सत्य की शोध के लिए मुमुक्षु की व्याकुलता कितनी तीव्र होनी चाहिये, सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया, ज्ञान और योग की व्यवस्थितता, अपरिग्रह, शांति दम इत्यादि दैवी गुणों का उत्कर्ष कहाँ तक साधा जा सकता है, तथा चित्त की शुद्धि किस नरह की होनी चाहिए ।
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