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महावीर
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उन्होंने अपनी सर्व सम्पत्ति का दान कर दिया। केशलोचन करके पज्य छोड़कर केवल एक वस्त्र से वे तप करने के लिए निकल पड़े।
८ वस्त्रार्थ दान:
दीक्षा के बाद जब वे चले जा रहे थे, तब एक वृद्ध मामण उनके पास आकर.भिक्षा मांगने गा । वर्धमान के पास पहने हुए पक्ष के अतिरिक और कुछ न था, अतः उसका भी आधा भाग उन्होंने बामण को दे दिया। ब्राह्मणने अपने गाँव जाकर उसके फटे माग का पल्ला बनवाने के लिए वह वक्ष एक तुननेवाले को दे दिया . तुननेवाले ने वस्त्र का मूल्यवान देखकर ब्राह्मण से कहा-“यदि इसका दूसरा भाग मिले तो उसके साथ इसे इस तरह जोड़ दूं कि कोई जान न सके। फिर उसे बेचने से भारी मूल्य मिलेगा
और हम दोनों उसे बाँट लेंगे।" उससे ललवाकर ब्राह्मण फिर वर्षमान की खोज में निकल पड़ा।