SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. विवाह सात हाथ ऊँची कायावाले वर्धमान यथाकाल तरुण हुए। बालपन से ही उनकी वृत्ति वैराग्य-प्रिय होने से संन्यास ही उनके जीवन का लक्ष्य था। उनके माता-पिता विवाह करने के लिए आग्रह करते, लेकिन वे नहीं करना चाहते थे। आखिर उनकी माता अत्यंत बाग्रह करने लगी और उनके सन्तोष के लिए विवाह करने के लिए उन्हें समझाने लगी। उनके अविवाहित रहने के आग्रह से माता के दिल में बहुत दुख होता था और वर्धमान का कोमल स्वभाव वह दुख नहीं देख सकता था। इसलिए अन्त में उन्होंने माता के संतोष के लिए यशोदा नाम की एक राजपुत्री के साथ विवाह किया। जिससे प्रियदर्शना नामक एक कन्या हुई। मागे जाकर इस कन्या का विवाह जमाली नामक एक:राजपुत्र के साथ हुआ। ६. माता-पिता का अवसान: वर्धमान जब २८:वर्ष की उम्र के हुए तब उनके माता-पिता ने जैन भावनानुसार अनशन ब्रत करके देह-त्याग किया। वर्षमान के बड़े भाई नन्दिवर्धन राज्यारूढ़ हुए। ७. गृह-त्याग: दो वर्ष के हो बाद संसार में रहने का कोई प्रयोजन नहीं है, ऐसा सोचकर जिस संन्यासी जीवना के लिए उनका चित्त व्याकुल हो रहा था उसे स्वीकार करने काटाहोने निश्चय किया।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy