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होती। उनका संपूर्ण जीवन उन्हें ऊँचा उठाकर ले जानेवाले रास्तेपैसा लगता है।
कार्यक्षेत्र प्रधान नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं कि प्रवृत्तियां पारबार बदलनी चाहिए। लेकिन प्रवृत्ति में से अपनी प्रत्येक शक्ति
और भावना के विकास पर दृष्टि रखना आवश्यक है। धन प्राप्त करना आता है तो दान करना भी जाना चाहिए; दान से प्रसिद्धि मिली हो तो गुप्त दान में निपुणता प्राप्त करनी चाहिए । धन पर प्रेम है, तो मनुष्य पर भी प्रेम करना आना चाहिए। इस तरह उत्तरोत्तर आगे बढ़ा जा सकता है। २. सिद्धार्थ की मिक्पा-वृत्ति: ____ स्नान आदि शौचविधि, पवित्रतासे किया हुआ सात्विक भोजन, व्यायाम इन सब का फळ चित्त की प्रसन्नता, जागृति और गुद्धि है। स्नान से प्रसन्नता होती है, नींद उड़ जाती है, स्थिरता भाती है और कुछ समय तो मानो त्यौहार के दिन जैसी पवित्रता मालूम होती है । ऐसा सबका अनुभव होगा ही। ऐसा ही परिणाम शुद्ध अन्न आदि के नियमों के महत्व से आता है। बआसपास का वातावरण अपने शरीर र मनपर बुरा असर न मल सके, इसलिए इन सब नियमों का पालन किया जाता है।
लेकिन जब ये बातें भुला दी जाती हैं तब इन नियमों का पाउन ही जीवन का सर्वस्व बन बैठता है ; साधन हो साध्य हो जाता है. और जब ऐसा होता है तब उन्नति की ओर ले जानेवाली जीवन-नौका पर यह नियम जमीन तक पहुंचे हुए लंगर की तरह