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बौद्ध शिक्षापद (१०) मकान में जिस दिशा से हवा के साथ धूल उड़ती हो उस तरफ की खिड़कियां बंद कर देना। ठंड के दिनों में दिनको खिड़कियां खुली रखना और रातको बंद करना तथा गर्मी में दिन को बंद रखना और रात को खुली रखना।
(११) शिष्य को अपने रहने की कोठरी, बैठने की कोठरी, एकत्र मिलने की बैठक, स्नानगृह तथा पाखाने को साफ रखना चाहिए। पीने तथा बरतने का जल भरकर रखना, पाखाने में रखी कोठी में पानी खतम हो गया हो तो भरकर रखना।
(१२) अध्ययन : गुरु के पास से नियत समय पर पाठ ले लेना और जो प्रश्न पूछने हों, वे पूछ लेना।
(१३) गुरु के दोषों की शुद्धि : गुरु में धर्माचरण में असंतोष यात्रुटि उत्पन्न हुई हो अथवा मन में शंका उत्पन्न होने से मिथ्याष्टि प्राप्त हुई हो तो शिष्य दूसरे के जरिए उसे दूर करावे अथवा स्वयं करे । अथवा धर्मोपदेश करे। गुरु से संघ के खासकर नैतिक और सैद्धान्तिक नियमों का भंग हुभा हो तो उनका परिमार्जन हो और संघ उसे फिर से पहली स्थिति में ला रखे, ऐसी योजना करना।
(१४) बीमारी : गुरु की बीमारी में वे जब तक मच्छेन हो अथवा न मरें तबतक उनकी सेवा करना।