SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. गुरु के धर्म : १५ अध्यापन: भरने शिष्य पर प्रेम रखना और उस.पर अनुयह करना, उसे धम-: पढ़ाना, उसके धार्मिक प्रश्नों के उत्तर देना, उपदेश पना तथा रीति-रिवाजों का परिचय दे उसकी मदद करना। १५.शिष्य की सम्हाल: अपने पास वसा, पात्र आरिहों और शिष्य के पास न हों, हो उसे देना अथवा प्राप्त करके देना। १७. धीमारी: शिष्य की बीमारी में गुरु का जाना-पहचाना शिष्य है और इगह-स्थान पर है, ऐसा बर्ताव करना। १८. कर्मकौशल : कपड़े कैसे धोना, स्वच्छता तथा व्यवस्था कैसे करना और कायम रखना आदि पात शिष्य को श्रमपूर्वक सिखाना। ५. भिक्षु (समाज सेवक) की योग्यता : १९. आरोग्यादि बौद्ध भितु होने की इच्छा रखनेगले में नीचे मुजब योग्यता गहिए-यह कुष्ट, गड, किलासमय तथा अपम्मार के रोगों से सहित न हो, पुरुषत्वहीन न हो, स्वतंत्र हों (यानी किसीके दासरव
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy