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बावश्यकता हो तो शरीर में तेल लगाना अथवा मालिश कर देना। बळाशय पर नहाना हो तो वहां भी गुरु की व्यवस्था करना। पानी में से बाहर निकल शरीर पोंछ, कपड़े बदल, गुरु को अंगोछा देना और जावश्यक हो तो शरार पोंछ देना। बाद में उन्हें पोये हुए कपड़े सौंप गीले कपड़े स्वच्छ करके धो डालना। उन्हें वनी पर सुखाना और सूखने के बाद व्यवस्थित षड़ी करके रख देना। लेकिन धूप में अधिक समय नहीं रहने देना।
(९) निवास-स्वच्छता : गुरुके निवास में रोज कचरा साफ कर देना । निवास साफ करते समय पहले जमीन पर की वस्तुएँ वैसे पात्र, वस्त्र, आसन, बिछौना, तकिया आदि उठाकर बाहर अथवा ऊँचे रख देना । खटिया बाहर निकालते समय दरवाजे से टकरावे नहीं, इसकी सावधानी रखना । खटियाके प्रतिपादक (पायों के नीचे रखने के लकड़ी के अथवा पत्थर के ठीए) एक
ओर रखना । पीकदान उठाकर बाहर रखना । बिछौना किस तरह बिका है यह ध्यान में रखकर ही बाहर निकालना । यदि निवास में जाले आदि हों तो पहले छत साफ करना । गेरू से रंगी हुई दीवारें ठया पक्का आंगन खराब हो गया हो तो पानी में कपड़ा गीला कर उसे निचोड़कर बादमें साफ करना। साधारण लिपी.पुती जमीन या बांगन से धूल न उड़े इसलिए पहले उसपर पानी छिड़ककर बाद में साफ करना । कचप जमा कर नियत स्थान पर डाल देना।
बिस्तर, खाट, पाट, चौरंग, पीकदान आदि सब चीजें धूप में भूखने योग्य स्थान पर रख देना।