SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और-शिक्षापद (४) पाणी-संयम : गुरु के बोल्ते समय उनके बीच में नही बोलना चाहिए, परंतु नियमका भंग न हो, ऐसा कुछ गुरु बोते तो नम्रता से उसका निवारण करना चाहिए। (५) प्रत्यागमन : बाहर से वापस लौटते समय खुर पहले आकर गुरु का आसन तैयार करना। पैर धोने के लिए पानी और पट्टा तैयार रखना । भागे जाकर गुरु के हाथ में छाता और पेश इत्यादि हो तो ले लेना, घर में से पहनने का वन दे देना और पहना हुमा बाल लेना । यदि वह बस पसीने से गीला हो गया हो तो उसे थोड़ी देर धूप में सुखाना, लेकिन उसे धूप में ही नहीं रहने देना । वस्त्र की एकत्र कर लेना और ऐसा करते समय फट न जाय, इसकी सावधानी रखना । वनों को संवार कर रख देना। (६) भोजन : नाश्ते को तरह भोजन करते समय भी गुरु भासन, पात्र, भोजन जादि की व्यवस्था करना। और भोजन के चपरांत पात्रादि साफ करना और जगह साफ करना। (७) भोजन के पात्र किसी स्वच्छ पट्टे अथवा चौरंग पर रखना लेकिन नीचं जमीन पर नहीं रखना। (८) स्नान : यदि गुरु को नहाना हो तो उसको व्यवस्था करना। उन्हें ठंडा या गर्म जैसा चाहते हों वैसा पानी देना।मदन की
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy