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बुद्ध
और भणियों के लिए ही हैं। अर्थात् इन सब नियमों का परिचय यहाँ संक्षेप में आज की उपयुक्त भाषा में दिया जाता है :
३. शिष्यों का धर्म :
शिष्यों को अपने गुरु की शुश्रूषा इस प्रकार करनी चाहिए : (१) प्रातः कर्म - बड़े सबेरे उठ जूते उतार, वस्त्रों को व्यवस्थित रख, गुरु को मुँह धोने के लिए दत्तौन और पानी देना और बैठने के लिए आसन बिछाना । उसके बाद उन्हें नाश्ता देना । नाश्ता कर चुकने के बाद हाथ-मुँह धोने को पानी देना और नाश्ते का बर्तन साफ कर व्यवस्थित रूप से उसे जगह पर रख देना । गुरु के उठते ही आसन स्थान पर रख देना और वह जगह यदि गन्दी हुआ हो तो साफ कर देना ।
(२) विचरण - जब गुरु बाहर जाना चाहें तब उनके बाहर जाने के वस्त्र लाकर देना और पहने हुए कपड़े उतारने पर ले लेना । गुरु बाहर गाँव जानेवाले हों, तो उनके प्रवास के पात्र, बिछौना तथा वस्त्र व्यवस्थित रीति से बाँधकर तैयार रखना । गुरु के साथ अपने को जाना हो तो स्वयं व्यवस्थित ऐतिसे वस्त्र पहन शरीर को अच्छी तरह ढँक अपने पात्र, बिछौना व वस्त्र बाँधकर तैयार होना ।
(३) मार्ग में चलते समय शिष्य को गुरुसे बहुत दूर अथवा बहुत नजदीक से नहीं चलना चाहिए।