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बुद्ध : "और दण्डप्रहार किया तो ?"
पूर्ण : "तो ऐसा समझं गा कि यह उनकी भलमनसाहत है कि उन्होंने शस्त्र प्रहार नहीं किया।"
बुद्ध : "और यदि शस्त्र प्रहार किया तो?" ।
पूर्ण : "उन्होंने मुझे जान से नहीं मारा, इसे उनकी उपकार समझंगा।"
बुद्ध : "और यदि प्राणघात किया तो ?"
पूर्ण : "भगवन् ! कितने ही भिक्षु इस शरीर से उकताकर आत्मघात करते हैं। ऐसे शरीर का यदि सुनापरन्त वासियों ने नाश किया तो मैं मानूंगा कि उन्होंने मुझपर उपकार ही किया है; इससे वे लोग बहुत उत्तम हैं, ऐसा मैं समझेंगा।"
बुद्ध : "शाबाश ! पूर्ण, शाबाश ! इस तरह शमदम से युक्त होने पर तुम सुनापरन्त देश में धर्मोपदेश करने में समर्थ होओगे।"
१३. दुष्ट को दण्ड देना यह उनकी दुष्टता का एक प्रकार का प्रतिकार है। दुष्टता को धैर्य और शौर्य से सहन करना और सहन करते-करते भी उनकी दुष्टता का विरोध किए बिना नहीं रहना, यह दूसरे प्रकार का प्रतिकार है। लेकिन दुष्ट की दुष्टता बरतने में जितनी कमी हो उतना ही शुभ चिह्न समझ उससे मित्रता करना
और मित्र-भावना द्वारा ही उसे सुधारने का प्रयत्न करना दुष्टता की जद काटने का तीसप प्रकार है। मित्र-भावना और अहिंसा