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________________ उपोश ' की कितनी ऊँची सीमा पर पहुँचने का प्रयत्न पूर्ण का रहा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है।' १४. नकुल-माता की समझदारी : नकुल माता के नाम से प्रसिद्ध बुद्ध की एक शिष्या का विवेकज्ञान अपने पति की भारी बीमारी के समय कहे हुए वचनों से जाना जाता है। उसने कहा : "हे गृहपति, संसार में आसक्त रहकर तुम मृत्यु को प्राप्त होलो, यह ठीक नहीं है। ऐसा प्रपंचासक्ति-युक्त मरण दुःखकारक है, ऐसा भगवान ने कहा है । हे गृहपति, कदाचित् तुम्हारे मन में ऐसी शंका आवे कि 'मेरे मरने के बाद नकुल माता-बच्चे का पालन नहीं कर सकेगी, संसार की गाड़ी नहीं चला सकेगी। परन्तु ऐसी शंका मन में न लाखो, क्योंकि मैं सूत कातने की कला जानती हूँ और ऊन तैयार करना भी जानती हूँ। उससे मैं तुम्हारी मृत्यु के बाद बालक का पालन कर सकूँगी। इसलिए हे गृहपति, आसक्तियुक्त अंतःकरण से तुम्हारी मृत्यु न हो, यह मेरी इच्छा है । हे गृहपति, तुम्हें दूसरी यह शंका होना भी संभव है कि 'नकुल-माता मेरे बाद पुनर्विवाह करेगी' परन्तु यह शंका छोड़ दो। मैं आज सोलह वर्ष से उपोसथ व्रत पाल रही हूँ, यह तुम्हें मालूम ही है तो फिर मैं तुम्हारी मृत्य के बाद पुनर्विवाह कैसे करूँगी ? हे गृहपति, तुम्हारी मृत्यु के बाद मैं भगवान् तथा भिक्षुसंघ का धर्मोपदेश सुनने नहीं जाऊँगी, ऐसी शंका तुम्हें होना संभव है, लेकिन तुम्हारे बाद पहले के अनुसार ही १. अंगुलीमाल नामक लुटेरे के हृदय-परिवर्तन की कथा भी विलक्षण है । इसके लिए देखो 'बुद्धलीला सार संग्रह।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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