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बुद्ध
इस तरह : दिशा का पूजन : अपना और जगत् का कल्याण करनेवाला नही है, ऐसा कौन कहेगा ?
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३. दस पाप :
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प्राणघात, चोरी और व्यभिचार ये तीन शारीरिक पाप हैं असत्य, चुगली, गाली और बकवाद ये चार वाचिक पाप हैं, और परधन की इच्छा, दूसरे के नाश की इच्छा तथा सत्य, अहिंसा, दया दान में अश्रद्धा ये तीन मानसिक पाप हैं 1
४. उपोसथ व्रत :
उपोसथ व्रत करनेवाले को उस दिन इस प्रकार विचार करना चाहिए :
मन
"आज मैं प्राणघात से 'दूर रहा हूँ ।' प्राणिमात्र के प्रति मेरे में दया उत्पन्न हुई है, प्रेम उत्पन्न हुआ है। मैं आज चोरी से दूर रहनेवाला हूँ, जिनपर मेरा अधिकार नहीं, ऐसा कुछ लेना नहीं
१.
बुद्ध के काल में मांसाहार का सामान्य प्रचार था । आज भी बिहार की तरफ वैष्णवों के सिवा दूसरे सब मांसाहारी हैं; : और वैष्णवों में भी ऐसा नहीं लगता की सब में मच्छी त्याज्य है । बुद्ध और बौद्ध भिक्षु ( कदाचित् प्रारंभ के जैन भिक्षु भी ) शाकाहरी ही थे, इसका प्रमाण नहीं मिलता । निरामिष भोजन ही करनेवाला वर्ग देश में धीरे-धीरे उत्पन्न हुआ है। और उसकी शुरूआत जैनों से हुई।