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________________ सम्प्रदाय १९ ११. सम्प्रदाय की विशेषता : बुद्ध के सम्प्रदाय की विशेषता यह है कि सामान्य नीति- प्रिय मनुष्य की बुद्धि में उतर सके, उन्हीं विषयों पर श्रद्धा रखने को वे कहते हैं 1 अपने ही बल से बुद्धि में सत्य के समान प्रतीत न हो ऐसे कोई चमत्कार, सिद्धांत, विधियों या व्रतों में वे श्रद्धा रखने को नहीं कहते । किसी कल्पना या वादपर अपने सम्प्रदाय की नींव उन्होंने नहीं डाली; किन्तु जैसे सब सम्प्रदायों में होता है उसी सत्य की अपेक्षा से सम्प्रदाय का विस्तार करने की अिच्छावाले लोगों ने पीछे से ये सब बातें बुद्ध धर्म में मिला दी हैं, यह सच है । हिन्दू और जैन धर्म की तरह बौद्धधर्म भी पुनर्जन्म की मान्यता पर खड़ा हुआ है । अनेक जन्मतक प्रयत्न करते-करते कोई भी जीव बुद्ध-दशा को प्राप्त कर सकता है । बुद्ध होने की इच्छा से जो जीव प्रयत्न करता है उसे बोधिसत्व कहते हैं । प्रयत्न करने की पद्धति इस प्रकार है : बुद्ध होने के पहले अनेक महागुणों को सिद्ध करना पड़ता है । बुद्ध में अहिंसा, करुणा, दया, बुदारता, ज्ञानयोग तथा कर्म की कुशलता, शौर्य, पराक्रम, तेज, क्षमादि सभी श्र ेष्ठ गुणों का विकास हुआ रहता है। जब तक एकाध सद्गुण की भी कमी होती है तब तक बुद्ध-दशा प्राप्त नहीं होती । यहाँ तक कि तब तक उसमें पूर्ण ज्ञान नहीं होता; वासनाओं पर विजय नहीं होती, मोह का नाश नहीं होता। एक ही जन्म में वह इन सब गुणों का विकास नहीं :
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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