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बुद्ध
- सम्यक् स्मृति - मैं क्या करता हूँ ? क्या बोलता हूँ ? क्या विचार करता हूँ ? इसका निरंतर भान ।
८ सम्यक समाधि' - अपने कर्म में एकाप्रता । अपने निश्चय एकाग्रता, अपने पुरुषार्थ में एकाग्रता और अपनी भावना में
में
एकाप्रता |
६.
, बौद्ध शरण-त्रय :
यह अष्टांग मार्ग बुद्ध का चौथा आर्य सत्य है।
1
जो बुद्धको मार्ग-दर्शक के रूप में स्वीकार करे उनके उपदेश किए हुए धर्म को ग्रहण करे और उनके भिक्षु संघ का संत्संग करे, वह बौद्ध कहलाता है :
है ।
बुध्द शरणं गच्छामि ।
धर्मं शरणं गच्छामि ।
संघं शरणं गच्छामि ।
इन तीन शरणों की प्रतिज्ञा लेने पर बुद्ध धर्म में प्रवेश होता
१ सम्यक्--यानी यथार्थ अथवा शुभ
२ भावना में एकाग्रता यानी कभी मैत्री, कभी द्वेष, कभी अहिंसा, कभी हिंसा, कभी ज्ञान, कभी अज्ञान, कभी वैराग्य, कभी विषयों की इच्छा आदि नहीं, बल्कि निरंतर मैत्री, अहिंसा, ज्ञान, वैराग्य में स्थिति यह समाधि है। देखो, गीता अध्याय १३ श्लोक ८ से १९; ज्ञान के लक्षण ।
३ देखो पिछडी टिप्पणी ५ वीं ।