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सम्प्रदाय
२. इनके सिवा दूसरे सब दुःख स्वयं मनुष्य के उत्पन्न किए हुए हैं। संसार के सुखों की तृष्णा, स्वर्ग के मुखों की तृष्णा और आत्मनाश की तृष्णा ये-तीन प्रकार की तृष्णाएँ पहले के दुःखों को फिर से उत्पन्न करने में तथा दूसरे सब दुःखों के कारण हैं। इन तृष्णाबों से प्रेरित हो मनुष्य पापाचरण करता है। अपने को तथा जगत् को दुःखी करता है। तृष्णा दुःखों का कारण है, यह दूसरा आर्य सत्य है।
३. इन तृष्णाओं का निरोध हो सकता है। इन तीन तृष्णामों को निर्मुल करने से ही मोक्षप्राप्ति होती है। यह तीसरा आर्य सत्य
४. तृष्णाओं का निधरो कर दुःखों का नाश करने के साधन के नीचे मुजब आठ अंग हैं :
१-सम्यक् ज्ञान-चार आर्य सत्यों को सब इग्रियों से विचार कर जानना।
२-सम्यक् संकल्प--शुभ कार्य करने का हो निश्चय । ३-सम्यक् वाचा-सत्य, प्रिय और हितकर वाणी। ४-सम्यक् कर्म--सत्कर्म में ही प्रवृत्ति ।
५-सम्यक् आजीविका प्रामाणिक रूप से ही आजीविका चलाने के लिए उद्यम।
६-सम्यक् प्रयत्न--कुशल पुरुषार्थ ।